गिलोय
गिलोय (लैटिन:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) एक बहुवर्षीय लता होती है, जिसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद में इसको कई नामों से जाना जाता है यथा अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी, आदि। 'बहुवर्षायु तथा अमृत के समान गुणकारी होने से इसका नाम अमृता है।' आयुर्वेद साहित्य में इसे ज्वर की महान औषधि माना गया है एवं जीवन्तिका नाम दिया गया है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम्र के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं। इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है। इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है। बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है। इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं। चट्टानों अथवा खेतों की मेड़ों पर जड़ें जमीन में घुसकर अन्य लताओं को जन्म देती हैं।टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत:पादपविभाग:मैग्नोलियोफाइटा
वर्ग:मैग्नोलियोप्सीडा
गण:Ranunculales
कुल:Menispermaceae
वंश:Tinospora
जाति:Tinospora cordifolia
गिलोय के पौधे बेल के काण्ड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर वर्ण की होती है, जिसे हटा देने पर भीतर का हरित मांसल भाग दिखाई देने लगता है। काटने पर अन्तर्भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है। पत्ते हृदय के आकार के, खाने के पान जैसे एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। ये लगभग 2 से 4 इंच तक व्यास के होते हैं। स्निग्ध होते हैं तथा इनमें 7 से 9 नाड़ियाँ होती हैं। पत्र-डण्ठल लगभग 1 से 3 इंच लंबा होता है। फूल ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे पीले रंग के गुच्छों में आते हैं। फल भी गुच्छों में ही लगते हैं तथा छोटे मटर के आकार के होते हैं। पकने पर ये रक्त के समान लाल हो जाते हैं। बीज सफेद, चिकने, कुछ टेढ़े, मिर्च के दानों के समान होते हैं। उपयोगी अंग काण्ड है। पत्ते भी प्रयुक्त होते हैं।
ताजे काण्ड की छाल हरे रंग की तथा गूदेदार होती है। उसकी बाहरी त्वचा हल्के भूरे रंग की होती है तथा पतली, कागज के पत्तों के रूप में छूटती है। स्थान-स्थान पर गांठ के समान उभार पाए जाते हैं। सूखने पर यही काण्ड पतला हो जाता है। सूखे काण्ड के छोटे-बड़े टुकड़े बाजार में पाए जाते हैं, जो बेलनाकार लगभग 1 इंच व्यास के होते हैं। इन पर से छाल काष्ठीय भाग से आसानी से पृथक् की जा सकती है। स्वाद में यह तीखी होती है, पर गंध कोई विशेष नहीं होती। पहचान के लिए एक साधारण-सा परीक्षण यह है कि इसके क्वाथ में जब आयोडीन का घोल डाला जाता है तो गहरा नीला रंग हो जाता है। यह इसमें स्टार्च की उपस्थिति का परिचायक है। सामान्यतः इसमें मिलावट कम ही होती है, पर सही पहचान अनिवार्य है। कन्द गुडूची व एक असामी प्रजाति इसकी अन्य जातियों की औषधियाँ हैं, जिनके गुण अलग-अलग होते हैं।
औषधीय गुणों के आधार पर नीम के वृक्ष पर चढ़ी हुई गिलोय को सर्वोत्तम माना जाता है क्योंकि गिलोय की बेल जिस वृक्ष पर भी चढ़ती है वह उस वृक्ष के सारे गुण अपने अंदर समाहित कर लेती है तो नीम के वृक्ष से उतारी गई गिलोय की बेल में नीम के गुण भी शामिल हो जाते हैं अतः नीमगिलोय सर्वोत्तम होती है। गिलोय के आयुर्वेदिक गुण-कर्म और प्रभाव-गिलोय त्रिदोष शामक होती है। स्निग्ध होने से वात, तिक्त-कषाय होने से कफ और पित्त का शमन करती है। गुडूची कुष्ठघ्न, वेदनास्थापन, तृष्णानिग्रह,छर्दिनिग्रह, दीपन-पाचन, पित्तसारक, अनुलोमन और कृमिघ्न है। इससे आमाशयगत अम्लता कम होती है। यह हृदय को बल देने वाली, रक्त विकार तथा पांडुरोग में गुणकारी है। खांसी, दौर्बल्यता, प्रमेह, मधुमेह में, त्वचा के रोगों में तथा कई प्रकार के ज्वर में उत्तम कार्य करती है। गिलोय को घृत के साथ सेवन करने से यह वात शामक, गुड़ के साथ सेवन करने से मलबद्धता नाशक, खांड के साथ सेवन करने से कफ शामक, सौंठ के साथ सेवन करने से आमवात शामक तथा एरण्ड तैल के साथ सेवन करने से वात शामक होती है। गुडुची का पत्र-शाक, कटु, तिक्त मधुर, उष्णवीर्य, लघु, त्रिदोष शामक, रसायन, अग्निदीपक, बलकारक, मलरोधक, चक्षुष्य तथा पथ्य होता है। यह वातरक्त, तृष्णा, दाह, प्रमेह, कुष्ठ, कामला तथा पाण्डु रोग में लाभप्रद है। गिलोय सत्व मधुर, लघु, त्रिदोष शामक, पथ्य, दीपन, नेत्र के लिए हितकरी, धातुवर्धक, मेध्य, और ववयस्थापक होता हैं।गिलोय का प्रयोग वातरक्त, पाण्डु, ज्वर, छर्दि, जीर्णज्वर, कामला, प्रमेह, अरुचि, श्वास, कास, हिक्का, अर्श, दाह, मूत्रकृच्छ, प्रदर तथा सोमरोग की चिकित्सा में किया जाता है। गिलोय के पौधे के सत्व में विषमज्वररोधी क्रिया पाई गयी है। इसके काण्ड स्वरस और चूर्ण में शोथरोधी तथा मष्तिष्क उद्दीपनरोधी क्रियाओ को प्रदर्शित करता है। गिलोय व्याधिक्षमत्व वर्धक क्रियाशीलता प्रदर्शित करता हैं। गिलोय का काण्ड सार ज्वरघ्न क्रियाशीलता प्रदर्शित करता हैं।
गिलोय एक ऐसा चमत्कारी पौधा है, जो सभी तरह के मर्ज की दवा साबित होता है। गिलोय किस तरह से मानव जीवन को हर तरह के रोगों से छुटकारा दिलाकर रोगमुक्त करती है। गिलोय एक ऐसी औषधि है, जिसे अमृत तुल्य वनस्पति माना जाता है। आयुर्वेदिक द्रष्टिकोण से रोगों को दूर करने में सबसे उत्तम औषधि के रूप में गिनी जाती है। यह मनुष्य को किसी भी प्रकार के रोगों से लड़ने कि ताकत प्रदान करती है। गिलोय की एक सबसे अच्छी खासियत ये है कि यह जिस भी पेड़ पर चढ़ जाती है, उसके गुण को अपने भीतर चढ़ा लेती है। नीम पर चढ़ी हुई गिलोय सबसे उत्तम मानी जाती है।
गिलोय के फायदे
ज्वरनाशक है गिलोयगिलोय को ज्वरनाशक भी कहा जाता है। अगर कोई व्यक्ति काफी दिनों से किसी भी तरह के बुखार से पीड़ित है और काफी दवाएं लेने के बाद भी बुखार में कोई आराम नहीं मिल रहा हो तो ऐसे व्यक्ति को रोजाना गिलोय का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही अगर किसी को डेंगू बुखार आ रहा हो तो उसके लिए मरीज को डेंगू की संशमनी वटी (गिलोय घनवटी) दवा का सेवन कराया जाए तो बुखार में आराम मिलता है। संशमनी वटी दवा डेंगू बुखार की आयुर्वेद में सबसे अच्छी दवा मानी जाती है।
आंखों की रोशनी बढ़ाये
जिनकी आंखों की रोशनी कम हो रही हो, उन्हें गिलोय के रस को आंवले के रस के साथ देने से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और आंख से संबंधित रोग भी दूर होते हैं। गिलोय एक शामक औषधि है, जिसका ठीक तरह से प्रयोग शरीर में पैदा होने वाली वात, पित्त और कफ से होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है।
पाचन रहे दुरुस्त
गिलोय के रस का नियमित रूप से सेवन करने से पाचन तंत्र ठीक रहता है। हमारा पाचन तंत्र ठीक रहे, इसके लिए आधा ग्राम गिलोय पाउडर को आंवले के चूर्ण के साथ नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। गिलोय शरीर में खून के प्लेटलेट्स की गिनती को बढ़ाती है।
डायबिटीज में फायदेमंद
जिन लोगों को डायबिटीज की बीमारी है, उन्हें गिलोय के रस का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। डायबिटीज के मरीजों के लिए यह वरदान है। ऐसे लोगों को हाथ की छोटी उंगली के बराबर (एक बलिस्त) गिलोय के तने का रस और बेल के एक पत्ते के साथ थोड़ी सी हल्दी मिलाकर एक चम्मच रस का रोजाना सेवन करना चाहिए। इससे डायबिटीज की समस्या नियंत्रित हो जाती है।
दूर करे मोटापा
मोटापा से परेशान व्यक्ति को रोजाना गिलोय का सेवन करना चाहिए। इसके एक चम्मच रस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से मोटापा दूर हो जाता है। इसके अलावा अगर पेट में कीड़े हो गए हों और कीड़े के कारण शरीर में खून की कमी हो रही हो तो पीड़ित व्यक्ति को कुछ दिनों तक नियमित रूप से गिलोय का सेवन कराना चाहिए।
इम्यूनिटी बढ़ाएं
गिलोय में एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं, जो खतरनाक रोगों से लड़कर शरीर को सेहतमंद रखते हंै। गिलोय किडनी और लिवर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है और खून को साफ करती है। नियमित रूप से गिलोय का जूस पीने से रोगों से लड़ने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।
सर्दी-खांसी दूर भगाए
किसी व्यक्ति को लगातार सर्दी-खांसी-जुकाम की समस्या हो रही हो तो उन्हें गिलोय के रस का सेवन कराएं। दो चम्मच गिलोय का रस हर रोज सुबह लेने से खांसी से काफी राहत मिलती है। यह उपाय तब तक आजमाएं, जब तक खांसी पूरी तरह ठीक न हो जाए।
ध्यान दें
गिलोय के पत्तों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके डंठल का ही प्रयोग करना चाहिए। अधिक मात्रा में गिलोय का सेवन न करें, अन्यथा मुंह में छाले हो सकते हैं।1. अगर आपको एनीमिया है तो गिलोय के पत्तों का इस्तेमाल करना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. गिलोय खून की कमी दूर करने में सहायक है. इसे घी और शहद के साथ मिलाकर लेने से खून की कमी दूर होती है.
2. पीलिया के मरीजों के लिए गिलोय लेना बहुत ही फायदेमंद है. कुछ लोग इसे चूर्ण के रूप में लेते हैं तो कुछ इसकी पत्तियों को पानी में उबालकर पीते हैं. अगर आप चाहें तो गिलोय की पत्तियों को पीसकर शहद के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं. इससे पीलिया में फायदा होता है और मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाता है.
3. कुछ लोगों को पैरों में बहुत जलन होती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी हथेलियां हमेशा गर्म बनी रहती हैं. ऐसे लोगों के लिए गिलोय बहुत फायदेमंद है. गिलोय की पत्तियों को पीसकर उसका पेस्ट तैयार कर लें और उसे सुबह-शाम पैरों पर और हथेलियों पर लगाएं. अगर आप चाहें तो गिलोय की पत्तियों का काढ़ा भी पी सकते हैं. इससे भी फायदा होगा.
4. अगर आपके कान में दर्द है तो भी गिलोय की पत्तियों का रस निकाल लें. इसे हल्का गुनगुना कर लें. इसकी एक-दो बूंद कान में डालें. इससे कान का दर्द ठीक हो जाएगा.
5. पेट से जुड़ी कई बीमारियों में गिलोय का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है. इससे कब्ज और गैस की प्रॉब्लम नहीं होती है और पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है.
6. गिलोय का इस्तेमाल बुखार दूर करने के लिए भी किया जाता है. अगर बहुत दिनों से बुखार है और तापमान कम नहीं हो रहा है तो गिलोय की पत्तियों का काढ़ा पीना फायदेमंद रहेगा. यूं तो गिलोय पूरी तरह सुरक्षित है फिर भी एक बार डॉक्टर से परामर्श जरूर ले लें.
100 बीमारियों में चमत्कारी रूप से असरकारी है गिलोय
इन दिनों लोग आयुर्वेद की शरण में जा रहे हैं। हर छोटी-बड़ी समस्या के इलाज में गिलोय का नाम खासा चर्चा में है। गिलोय या गुडुची, जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है, का आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके खास गुणों के कारण इसे अमृत के समान समझा जाता है और इसी कारण इसे अमृता भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही इन पत्तियों का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों में एक खास तत्व के रुप में किया जाता है।
गिलोय की पत्तियों और तनों से सत्व निकालकर इस्तेमाल में लाया जाता है। गिलोय को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना जाता है। यह तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है।
गिलोय के गुणों की संख्या काफी लंबी है। इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। इसे नीम और आंवला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है।
अपने सूजन कम करने के गुण के कारण, यह गठिया और आर्थेराइटिस से बचाव में अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय के पाउडर को सौंठ की समान मात्रा और गुगुल के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से इन बीमारियों में काफी लाभ मिलता है। इसी प्रकार अगर ताजी पत्तियां या तना उपलब्ध हों तो इनका ज्यूस पीने से भी आराम होता है।
आयुर्वेद के हिसाब से गिलोय रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है।
लंबे समय से चलने वाले बुखार के इलाज में गिलोय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाता है जिससे यह डेंगू तथा स्वाइन फ्लू के निदान में बहुत कारगर है। इसके दैनिक इस्तेमाल से मलेरिया से बचा जा सकता है। गिलोय के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
शरीर में पाचनतंत्र को सुधारने में गिलोय काफी मददगार होता है। गिलोय के चूर्ण को आंवला चूर्ण या मुरब्बे के साथ खाने से गैस में फायदा होता है। गिलोय के ज्यूस को छाछ के साथ मिलाकर पीने से अपाचन की समस्या दूर होती है साथ ही साथ बवासीर से भी छुटकारा मिलता है।
गिलोय में शरीर में शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप 2 के उपचार में बहुत कारगर है।
गिलोय एडाप्टोजेनिक हर्ब है अत:मानसिक दवाब और चिंता को दूर करने के लिए उपयोग अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय चूर्ण को अश्वगंधा और शतावरी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें याददाश्त बढ़ाने का गुण होता है। यह शरीर और दिमाग पर उम्र बढ़ने पर पडने वाले प्रभाव की गति को कम करता है। आयुर्वेद की पुस्तकों में दावा किया गया है कि यह 100 से अधिक बीमारियों में असरकारी है।
सावधानी : अपने अनगिनत गुणों के साथ गिलोय सभी उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद है परंतु कुछ लोगों में इससे विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। इससे कुछ लोगों की पाचन क्रिया खराब हो सकती है। गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सकीय सलाह के इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए।
गिलोय
Reviewed by vikram beer singh
on
9:44 AM
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